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18 जून 2020

यूरोपियों का भारत आगमन -आधुनिक भारतीय इतिहास - Rajgktopic

यूरोपियों का भारत आगमन - आधुनिक  भारतीय इतिहास 

       
   आज हम इस पोस्ट में यूरोपिय कम्पनियों  के भारत आगमन का (europiyon ka bharat aagman ) सही क्रम  क्या था।  आधुनिक भारतीय इतिहास में भारत आने वाली प्रत्येक विदेशी ताकत के बारे में अलग अलग महत्वपूर्ण तथ्यों का अध्ययन करेंगे।आधुनिक भारतीय इतिहास में यूरोपियों के भारत आगमन के  सही क्रम को इस प्रकार से समझ सकते हैं। 


यूरोपिय कंपनियों  के भारत आगमन का सही क्रम इस प्रकार से है पुर्तगाली, डच,अंग्रेज,डेन व फ्रांसीसी। इसे हम निम्न ट्रिक से भी याद रख सकते हैं। सूत्र इस प्रकार है -


PD अंडे फ्राई कर

यहां P से पुर्तगाली, D से डच, अंडे के अं से अंग्रेज, डे से डेन , व फ्राई से फ़्रांसीसी ।




यूरोपियों का भारत आगमन

                यूरोपियों का भारत आगमन

1. भारत में पुर्तगालियों का आगमन - ( Bharat me purtgaliyon ka aagman )

          जब 1453 ईस्वी में कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो गया तो यूरोप और भारत के मध्य स्थल मार्ग नहीं रहा अतः यूरोपीय देश समुद्री मार्ग की खोज में लग गए । मई 1498 में वास्कोडिगामा समुद्री मार्ग से होता हुआ केरल के कालीकट नामक स्थान पर भारत पहुंचा जहां के हिंदू राजा जमोरिन ने उसका स्वागत किया।

(A) फ्रांसिस्को डी अल्मेड़ा (1505-1509) भारत में पहला पुर्तगाली गवर्नर था जिसे नीले पानी की नीति (Blue water policy) का जनक माना जाता है । क्योंकि इन्होंने पुर्तगालियों की समुद्री ताकत को बढ़ाने पर बल दिया।


(B) 1509 में द्वितीय पुर्तगाली गवर्नर अल्बूकर्क भारत आया जिसने कोचीन में एक दुर्ग बनवाया तथा 1510 ई. बीजापुर के सुल्तान युसूफ आदिलशाह से गोवा छीन कर गोवा पर अधिकार कर लिया।अल्बूकर्क को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।


    पुर्तगाली भारत में 1961 तक रहे हालांकि उस समय उनके पास सिर्फ गोवा दमन और दीव रह गए थे। इस प्रकार भारत में सर्वप्रथम आने वाले पुर्तगाली वह सबसे अंत में भारत से जाने वाले भी पुर्तगाली ही थे। पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत में तंबाकू की खेती जहाज निर्माण एवं प्रिंटिंग प्रेस का सूत्रपात हुआ।


2. भारत में डचों का आगमन - (bhart me dachon ka aagman )


           पुर्तगालियों को मिले व्यापारिक लाभ से प्रोत्साहित होकर होलेंड निवासी जिन्हें डच कहा जाता है, ने भारत की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया ।1596 ई.में कार्नेलिस डे हस्तमान प्रथम डच नागरिक था जो भारत आया।

 1602 ईस्वी में 'डच इंडिया कंपनी' की स्थापना हुई । उन्होंने 1605 इसी में पहली फैक्ट्री मसूलीपट्टनम में स्थापित की। 1639 ई. में उन्होंने गोवा पर (जो पुर्तगाली शक्ति का केंद्र था) पर आक्रमण किया 1759 ईस्वी में अंग्रेजी तथा डचो के बीच मसालों के द्वीप को लेकर संघर्ष होता रहा जिसमें अंग्रेज विजय हुए।


3. भारत में अंग्रेजों का आगमन - ( bharat me angrejon ka aagman )


          महारानी  एलिजाबेथ के समय अन्य यूरोपीय जातियों को भारत में व्यापारिक लाभ मिलता देख कर अंग्रेज भी भारत की ओर आकृष्ट हुए और 31 दिसंबर 1600 ई. को महारानी एलिजाबेथ से भारत में व्यापार करने के लिए आज्ञा पत्र प्राप्त किया और भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कर व्यापार प्रारंभ किया।

   प्रारंभ में  ब्रिटिश व्यापारियों को 15 वर्ष के लिए आज्ञा पत्र प्रदान किया गया था किंतु उन्होंने धीरे-धीरे भारतीय व्यापार पर अपना एकाधिपत्य स्थापित कर लिया और भारतीय राजनीति में भी हस्तक्षेप करने लगे। 1608ई.में कप्तान हॉकिंस इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम से आज्ञा पत्र लेकर मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में आया । 

     1613 इसमें में सूरत में अंग्रेजों की व्यापारिक कोठी की स्थापना हुई। 1615 ई. में सर टॉमस रो व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने के उद्देश्य से मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार आगरा में उपस्थित हुआ। 1757 ईस्वी में प्लासी के युद्ध में लॉर्ड क्लाइव ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर भारत में अंग्रेजी राज्य की नींव रखी।

  1764 में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो ने शाह आलम द्वितीय (मुगल सम्राट) शुजाउदौला (अवध का नवाब) और मीर कासिम (बंगाल का नवाब) की संयुक्त सेनाओं को हराकर अंग्रेजी राज्य को दिल्ली तक विस्तृत कर दिया।


4. भारत में डेनिश का आगमन - ( bharat me denish ka aagman )


   भारत में 1616 ईस्वी में डेनमार्क निवासी जिन्हें डेनिश कहा जाता है का आगमन हुआ डेनिश भी भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आए थे। 

      यहां आकर उन्होंने त्रावणकोर एवं श्रीरंगपट्टनम में अपनी व्यापारिक केंद्र स्थापित किए, किंतु परिस्थितियों के अनुकूल न होने के कारण डेनिश व्यापारियों ने अपनी व्यापारी के केंद्र अंग्रेजों को बेच दिए और भारत से वापस चले गए।


5. भारत में फ्रांसीसियों का आगमन - (bharat me fransisiyon ka aagman )


              अन्य यूरोपीय जातियों की तरह 1664 ई. में फ्रांसीसी व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आए, फ्रांसीसी सम्राट लुई 14वें के मंत्री कॉलबर्ट द्वारा 1664 ई.में 'फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी'की स्थापना की गई थी।।यह सरकारी कंपनी थी इस पर व्यापारियों का नियंत्रण न होकर राजा का पूर्ण नियंत्रण था जबकि अन्य यूरोपीय कंपनियों पर व्यापारियों का नियंत्रण था।


इन्होंने 1667 ई. में सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की। कांची सिंह का मुख्य उद्देश्य भारत में व्यापार द्वारा पूंजी एकत्रित कर मेडागास्कर में उपनिवेश स्थापित करना था यद्यपि भारत में सबसे बाद में फ्रांसीसी आए किंतु यहां के राजनीतिक षडयंत्रों में सर्वप्रथम भाग लिया।


       फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहा फलस्वरुप फ्रांसीसी एवं अंग्रेजों के मध्य संघर्ष हुआ दोनों शक्तियों के मध्य तीन युद्ध हुए जिन्हें कर्नाटक युद्ध कहा जाता है। अंत में 1760 ई.में वांडीवाश के युद्ध में अंग्रेजो ने फ्रांसीसी को बुरी तरह परास्त कर दिया । इसके साथ ही भारत से सदा के लिए फ्रांसीसी शक्ति का प्रभुत्व समाप्त हो गया।


प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए विशेष... ध्यान में रहे-

यूरोपिय कंपनियों  के भारत में आगमन  का सही क्रम निम्न प्रकार से है-पुर्तगाली,डच,अंग्रेज, ,डेनिस फ्रांसीसी   सूत्र (PDADF)--RPSC Lect.Exam2020


जबकि यूरोपियों द्वारा भारत में कंपनियों की स्थापना का क्रम निम्न प्रकार से है---- --पुर्तगाली,अंग्रेज ,डच,डेनिस व फ्रांसीसी। (PADDF) H-TET-Exam2019


 तो  इस प्रकार आधुनिक भारतीय इतिहास में  यूरोपियों के भारत आगमन ( europiy compniyon ka bharat aagman )का सही क्रम  क्या था इसके बारे में जानकारी  प्राप्त की है । यूरोपियों के भारत आगमन का सही क्रम इस प्रकार से था - पुर्तगाली, डच,अंग्रेज,डेन व फ्रांसीसी।






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