हिंदी साहित्य - अलंकार के भेद ,परिभाषा । alankar ke bhed , paribhasha
हिंदी साहित्य में अलंकार एक महत्त्वपूर्ण बिंदु है। अलंकार के भेद परिभाषा की जानकारी आज हम इस लेख के माध्यम से प्राप्त करेंगे। अलंकार काव्य शास्त्र का विषय है।
अलंकार की परिभाषा - alankar ki paribhasha
अलंकार शब्द का शाब्दिक अर्थ आभूषण होता है। अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है। अलम् तथा कार। यहां अलम् का अर्थ ' शोभा ' तथा कार का अर्थ है ' करने वाला '। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारकों को अलंकार कहते हैं।
अर्थात् काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तथा शब्दों एवं अर्थों की सुंदरता में वृद्धि करके चमत्कार उत्पन्न करने वाले कारकों को अलंकार कहते हैं। अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। दूसरे शब्दों में काव्य की सुंदरता में वृद्धि करते हैं। अलंकार कभी भी काव्य में शोभा उत्पन्न नहीं करते हैं केवल शोभा में वृद्धि करते हैं।
अर्थात् काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तथा शब्दों एवं अर्थों की सुंदरता में वृद्धि करके चमत्कार उत्पन्न करने वाले कारकों को अलंकार कहते हैं। अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। दूसरे शब्दों में काव्य की सुंदरता में वृद्धि करते हैं। अलंकार कभी भी काव्य में शोभा उत्पन्न नहीं करते हैं केवल शोभा में वृद्धि करते हैं।
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अलंकारों का महत्त्व -
अलंकारों से काव्य या कविता रूचिप्रद और पठनीय बन जाता है। भाषा में गुणवत्ता का समावेश हो जाता है। कविता में अभिव्यक्ति की स्पष्टता आ जाती है जिससे कविता में सम्प्रेषण बन जाता है। अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाने वाले साधन हैं साध्य नहीं। जिस प्रकार नारी की शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण का महत्त्व होता है उसी प्रकार काव्य की शोभा बढ़ाने के लिए अलंकारों का महत्त्व होता है।
अलङ्कार के भेद |
अलंकार के भेद - alankar ke bhed
हिंदी काव्य शास्त्र में अलंकार के मुख्यत: दो भेद होते हैं।
शब्दालंकार
अर्थालंकार
शब्दालंकार -
काव्य में जब शब्दों के माध्यम से ही चमत्कार या काव्य शोभा में वृद्धि होती है तब वे शब्दालंकार कहलाते हैं। काव्य में प्रयुक्त शब्द के स्थान पर उसका पर्याय रख देने पर अर्थ में बदलाव न होने पर भी शब्द का चमत्कार नष्ट हो जाता है वहॉँ शब्दालंकार होता है।
क्योंकि काव्य में चमत्कार शब्द विशेष में होता है। अर्थात् काव्य में जब शब्द के माध्यम से शोभा में वृद्धि होती है, उसे अर्थालंकार कहते हैं।
क्योंकि काव्य में चमत्कार शब्द विशेष में होता है। अर्थात् काव्य में जब शब्द के माध्यम से शोभा में वृद्धि होती है, उसे अर्थालंकार कहते हैं।
अनुप्रास ,यमक, श्लेष, वक्रोक्ति आदि शब्दालंकार हैं।
अर्थालंकार -
काव्य में जब अलंकार का सौंदर्य अर्थ में निहित होता है वहाँ अर्थालंकार होता है। काव्य में चमत्कार उत्पन्न करने वाले शब्द की जगह उसका पर्याय रख देने से भी अर्थ के माध्यम से काव्य की शोभा बनी रहती है ,वहाँ अर्थालंकार होता है।
अर्थात् काव्य में जब अर्थ के माध्यम से शोभा में वृद्धि होती है, उसे अर्थालंकार कहते हैं।
अर्थात् काव्य में जब अर्थ के माध्यम से शोभा में वृद्धि होती है, उसे अर्थालंकार कहते हैं।
उपमा, रूपक ,अतिशयोक्ति, अन्योक्ति ,विभावना ,संदेह ,दृष्टांत विरोधाभास आदि अर्थालंकार हैं।
कभी-कभी कुछ शब्द काव्य में शब्द और अर्थ दोनों के माध्यम से भी शोभा बढ़ाते हैं ऐसे अलंकारों को उभयालंकार कहते हैं।
इस प्रकार आज अलंकार की परिभाषा व अलंकार के भेदों [ alankaar ke bhed and paribhasha ] के बारे में जानकारी प्राप्त की है। जानकारी अच्छी लगी तो साथियों तक पहुँचाना न भूलें। अधिक जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहें व ईमेल नोटिफिकेशन के द्वारा भी जानकारी पा सकते हैं।
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