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20 जुल॰ 2020

राजस्थान में 1857 की क्रांति सम्पूर्ण जानकारी -

राजस्थान में 1857 की क्रांति | ( rajasthan 1857 ki kranti )


राजस्थान में 1857 की क्रांति का सूत्रपात राजनीतिक जन-जागरण में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।  1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा गया है। राजस्थान में राजपूताना के अधिकांश राजाओं के पास अपनी संगठन शक्ति और दूरदर्शितापूर्ण नीतियों का अभाव था। इसी कारण से मुगल बादशाहों की अधीनता के बाद धीरे-धीरे वे अंग्रेजों के अधीन भी होते गए। 1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान अति महत्त्वपूर्ण रहा है। 

 व्यापार के बहाने ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आयी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 100 वर्ष तक भारत में विभिन्न तरीकों से शोषणकारी नीतियों के द्वारा शोषण किया। गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली द्वारा सहायक संधि की नीति प्रारंभ की गई  अंग्रेजों को अपनी विदेश नीति के तहत उत्तरदायित्व था कि देशी राज्यों की बाह्य सुरक्षा प्रदान करना। लेकिन खर्चा स्वयं राज्यों को उठाना पड़ता था।

इसके बाद लॉर्ड हार्डिंग की आर्थिक पार्थक्य की नीति के तहत राजस्थान के राजाओं ने अंग्रेजों से सन्धियां की। 1848 में लॉर्ड डलहौजी गवर्नर जनरल बनकर भारत आए थे। इन्होंने भारत में एक नए सिद्धांत राज्यों के विलय की नीति लागू की। इस नीति के तहत भारत के अनेक रियासतों को अंग्रेजी राज्यों में मिला लिया गया। गोद निषेध नीति लागू करने वाला गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ही था। 

राजस्थान में 1857 की क्रांति
राजस्थान में 1857 की क्रांति


सेना में एनफील्ड राइफलों में गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से भी भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को बहुत बुरा झटका लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी की विभिन्न शोषणकारी नीतियों के कारण भारतीय शासक जमीदार भारतीय सैनिक जनसाधारण लोगों में अंग्रेजों के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न हो गया। 

यह असंतोष 1857 की क्रांति के रूप में अंग्रेजी शासन को भारत से उखाड़ फेंकने की दिशा में पहला प्रयत्न था। राजस्थान में 1857 के विद्रोह की जानकारी सार रूप में इस प्रकार दी जा रही है।

राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय छावनियां -


1857 की क्रांति के समय राजस्थान में 6 सैनिक छावनियां थी। जो इस प्रकार हैं-
  • एरिनपुरा छावनी
  • नसीराबाद छावनी
  • नीमच छावनी
  • देवली छावनी
  • खेरवाड़ा छावनी
  • ब्यावर छावनी

    इन 6 छावनियों को हम निम्न सूत्र के माध्यम से याद रख सकते हैं-

           याद करने का सूत्र  -     ए ननी देख ब्याव 


            ए से एरिनपुरा

                न से नसीराबाद

              नी से नीमच

              दे से देवली

              ख से खेरवाड़ा

             ब्याव से ब्यावर

    नसीराबाद छावनी -

      
                नसीराबाद की छावनी सबसे शक्तिशाली छावनी थी। राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत नसीराबाद से ही हुई थी। अजमेर राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का प्रमुख केंद्र था। अजमेर से बंगाल नेटिव इन्फेंट्री हटाए जाने तथा मेर पलटन को वहां नियुक्त करने के कारण 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों में असंतोष बढ़ गया था। चर्बी वाले कारतूस का ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रयोग करने पर सैनिक असंतोष बढ़ गया था ।

      नसीराबाद छावनी ने 18 मई 1857 को शाम 4 बजे विद्रोह किया था। राजपूत सरदार डूंगरसिंह ने नसीराबाद छावनी को लूट लिया था। अंग्रेजी कम्पनी का विरोध करने वाले सैनिक 18 जून 18 57 को दिल्ली पहुंच गए और अंग्रेजी सेना पर आक्रमण करके उसे पराजित कर दिया।

    नीमच छावनी-

    यह छावनी राजस्थान में न होकर राजस्थान  से बाहर मध्यप्रदेश में स्थित थी।यह राजस्थान और मध्यप्रदेश के  सीमावर्ती क्षेत्र  में स्थित थी। लेकिन इसकी जिम्मेदारी मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट कैप्टन शावर्स के पास थी। क्रांति का दूसरा केंद्र नीमच बना जहां 3 जून 1857 की क्रांति फूट पड़ी।

    2 जून को कर्नल एबोर्ट  ने हिंदू और मुसलमान सिपाहियों को गंगा और कुरान की शपथ दिलाई थी कि वह ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रहेंगे। कर्नल एबोर्ट  ने स्वयं भी बाइबिल को हाथ में लेकर शपथ ली थी। लेकिन 3 जून 1857 को नसीराबाद की क्रांति का समाचार नीमच पहुंचा तो उसी दिन रात्रि के 11:00 बजे वहां भी विद्रोह हो गया। 


    क्रांतिकारियों ने छावनी को घेर लिया और उसको आग लगा दी। बंगलों  पर तैनात किए गए सैनिकों ने क्रांतिकारी पर गोली चलाने से इंकार कर दिया और कुछ समय बाद ही विभिन्न क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। सैनिकों ने हीरासिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया था।

     

    डूंगला नामक स्थान पर नीमच छावनी से बचकर भागे हुए 40 अंग्रेज अफसर व उनके परिवार के लोगों को क्रांतिकारियों ने बंधक बना लिया। लेकिन मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मेजर शावर्स ने मेवाड़ की सेना की सहायता से उन्हें छुड़ाकर उदयपुर पहुंचाया। 


    महाराणा स्वरूप सिंह ने उन्हें पिछोला झील के जग मंदिर में शरण प्रदान की। 5 जून 1857 को क्रांतिकारियों ने आगरा होते हुए दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। क्रांतिकारियों ने आगरा जेल में बंद सभी कैदियों को मुक्त कर दिया और सरकारी खजाने को लूट लिया।

     एरिनपुरा छावनी - ( पाली , जोधपुर )


    यह स्थान राजस्थान के वर्तमान जिला सिरोही में स्थित है। 1857 के विद्रोह के समय यह मारवाड़ रियासत का एक भाग था। 21 अगस्त 1857 को छावनी के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। क्रांतिकारियों ने शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में चलो दिल्ली मारो फिरंगी का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।

    खेरवाड़ा छावनी -

     यह छावनी उदयपुर में स्थित थी। छावनी ने 1857 की क्रांति में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था। यहां भीलों की टुकड़ी ( कोर भील ग्रुप ) थी।

    देवली छावनी -

    यह छावनी टोंक जिले में स्थित थी। नीमच के क्रांतिकारी देवली भी पहुंचे और उन्होंने छावनी को आग लगा दी। बताया जाता है कि देवली छावनी में कोई भी ब्रिटिश सैनिक हताहत नहीं हुआ क्योंकि छावनी को पहले खाली किया जा चुका था और वहां से ब्रिटिश अधिकारियों को मेवाड़ स्थित जहाजपुर कस्बे में बसा दिया गया था। 

    क्रांतिकारियों ने कोटा रेजिमेंट के 60 व्यक्तियों को देवली छावनी से अपने साथ चलने के लिए बाध्य किया परंतु रास्ते में यह सैनिक भाग निकलने में सफल हो गए और कुछ दिनों पश्चात वापस देवली आ गए। देवली में जून 1857 में विद्रोह हुआ था ।

    ब्यावर छावनी -


    ब्यावर छावनी वर्तमान अजमेर जिले में स्थित थी। 1857 की क्रांति में ब्यावर छावनी ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था। ब्यावर में मेर जाति की टुकड़ी थी। 


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    1857 की क्रांति के समय राजस्थान में पोलिटिकल एजेंट -


    राजस्थान में राजपूताना रेजिडेंसी की स्थापना 1832 ई. में हुई । राजपूताना रेजिडेंसी का मुख्यालय अजमेर में था। लेकिन 1845 में ग्रीष्मकाल में माउंट आबू (सिरोही ) स्थानांतरित कर दिया गया । इसका मुख्य अधिकारी ए जी जी (AGG - agent to governor general) होता था सभी रियासतें इसके नियंत्रण में थी। उस समय भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक थे।

    राजस्थान के प्रथम ए जी जी मिस्टर लोकेट थे। 1857 के विद्रोह के समय राजस्थान में कार्यवाहक ए जी जी जॉर्ज पैट्रिक लोरेंस थे। देसी राज्यों पर नियंत्रण रखने के लिए विभिन्न रियासतों में पॉलिटिकल एजेंटों की नियुक्ति की गई थी जो इस प्रकार हैं -


     पोलिटिकल  एजेंट -
     
    उदयपुर में कैप्टन शावर्स 

    कोटा में मेजर बर्टन 

    जयपुर में कैप्टन विलियम ईडन

    जोधपुर में कैप्टन मैंक मोसन 

    भरतपुर में मेजर निक्सन
    सिरोही में कैप्टन जे.डी. हाल की नियुक्ति की गयी थी।



    अट्ठारह सौ सत्तावन (1857 )  की क्रांति से संबंधित जानकारी एक नजर -



    1857 की क्रांति के समय कोटा के महाराजा रामसिंह द्वितीय थे।

    नसीराबाद छावनी को लूटने वाला राजपूत सरदार डूंगर सिंह था।

    1857 की क्रांति के समय आउवा में जोधपुर स्थित ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट कैप्टन मौंक मेसन की हत्या की गई थी। क्रांतिकारियों ने मोंक मेसन का सिर धड़ से अलग कर के आऊवा के किले पर लटका दिया जो एक प्रकार से क्रांतिकारियों की विजय का प्रतीक था।

    दामोदर दास राठी को राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम का भामाशाह कहा जाता है।

    कोटा में ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन का सिर काट लिया गया था और संपूर्ण शहर में घुमाया गया था।

    भारत में 1857 की क्रांति का प्रतीक कमल का फूल और रोटी था।

    मारवाड़ में विद्रोह का सर्वप्रमुख व शक्तिशाली केंद्र आऊवा नामक स्थान था।

    राजस्थान में अट्ठारह सौ सत्तावन (1857 ) की क्रांति का सूत्रपात नसीराबाद की छावनी से हुआ था।  

    1857 क्रांति की शुरुआत राजस्थान में 28 मई 1957 को हुई थी। 1857 की क्रांति में राजस्थान का प्रथम शहीद बीकानेर निवासी अमरचंद बांठिया था।

    8 सितंबर 1857 को जोधपुर महाराजा तख्त सिंह की सेनाओं और क्रांतिकारियों एवं आउवा के ठाकुर खुशाल सिंह चम्पावत की सशस्त्र सेनाओं के मध्य पाली के समीप बिठौड़ा/बिथौड़ा व चेलावास में युद्ध हुआ। चेलावास के युद्ध को गौरों व कालों का युद्ध भी कहा जाता है। ठाकुर कुशाल सिंह की विजय हुई थी।

    1857 की क्रांति के समय राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत टोंक थी जिसका नवाब वजीरुदौला ( वजीर खां )था । यह ब्रिटिश सरकार के प्रति पूर्ण रूप से वफादार था।

    कोटा में यहां के रिसालदार मेहराब खां व जयदयाल भटनागर के नेतृत्व में विद्रोह किया था। कोटा जन -विद्रोह का प्रमुख केंद्र था।

    राजपूताने  के एकमात्र शासन बीकानेर के शासक सरदारसिंह ने अंग्रेजों की सहायता के लिए राज्य से बाहर सेना भेजी थी। 

    राजस्थान में आऊवा का विद्रोह ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत के नेतृत्व में हुआ। ठाकुर कुशाल सिंह और कैप्टन हीथकोट की सेना के मध्य  8 सितम्बर 1857 को बिथौड़ा ( पाली ) के समीप युद्ध हुआ।

    भारत में 1857 की क्रांति का सूत्रपात 10 मई 1857 को मेरठ से हुआ था। गाए और सूअर की चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग के विरुद्ध पहली घटना कोलकाता के समीप बैरकपुर छावनी में हुई थी।

     मंगल पांडे नामक सिपाही ने चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया था। मंगल पांडे 1857 की क्रांति के भारत के प्रथम शहीद थे। भारत में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले सर्वाधिक सिपाही अवध के थे।

    1857 की क्रांति को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नाम से भी जाना जाता है। 1857 की क्रांति के समय राजस्थान में अंग्रेजों का शस्त्रागार अजमेर में था।

    नीमच में 3 जून 1857 को क्रांति की शुरुआत हुई।राजस्थान में 1857 की क्रांति में ब्यावर और खेरवाड़ा छावनी ने भाग नहीं लिया था। 

    1857 की क्रांति को वीर विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी पुस्तक ( वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस ) में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है। 

    1857 की क्रांति में राजस्थान की खेरवाड़ा और ब्यावर छावनी ने भाग नहीं लिया था।

    1857 की क्रांति का सम्बन्ध तात्यां टोपे का राजस्थान से भी है। सर्वप्रथम तात्यां टोपे  8 अगस्त 1857  को  भीलवाड़ा आये थे। झालावाड़ के शासक पृथ्वीसिंह  को हराया था। दूसरी बार 11 दिसम्बर 1857 को राजस्थान में आये।  बांसवाड़ा  लिया था। 

    1857 की क्रांति के समय  भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग थे। 

     1857 की क्रांति के समय राजपूताना शासक -


      1857 की क्रांति के समय  रियासतों के शासक इस प्रकार थे -

     जोधपुर में  महाराजा तख़्त सिंह 

     कोटा में रामसिंह 

    जयपुर में रामसिंह द्वितीय 

    भरतपुर रियासत में राजा जसवंत सिंह 

    धौलपुर रियासत में राजा भगवंत सिंह 

    बीकानेर में सरदारसिंह 

    करौली में मदनपाल 

    अलवर में विनयसिंह 

    उदयपुर रियासत में स्वरूपसिंह 

    डूंगरपुर में उदयसिंह 

    बांसवाड़ा  लक्ष्मणसिंह 

    टोंक में नवाब वजीर सिंह ( वजीरुद्दौला )

    झालावाड़ में पृथ्वीसिंह  आदि।


    1857 ई. के विद्रोह के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 द्वारा कंपनी का शासन समाप्त कर ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया। 1857 की क्रांति को  राजस्थान में 1857 का विप्लव , 1857 का स्वतंत्रता संग्राम नामों से भी जाना जाता है।
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