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16 जुल॰ 2020

बौद्ध संगीतियां - आयोजन स्थान अध्यक्ष और शासक

बौद्ध संगीतियां -  आयोजन स्थान अध्यक्ष और शासक  -


आज के इस लेख में बौद्ध संगीति और उनके आयोजन  स्थान और अध्यक्ष व शासनकाल के बारें में सारगर्भित जानकारी दिए जाने का सार्थक प्रयास किया गया है - 
Boudh sangiti -aayojan sthal , Adhyaksh and shaasak -

बौद्ध संगीति का अर्थ -

यह बौद्ध धर्म से संबंधित है। संगीति का अर्थ होता है साथ साथ चलना।बौद्ध धर्म में जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण (मोक्ष) है। जिसका शाब्दिक अर्थ शांत हो जाना या बुझ जाना होता है। निर्वाण की प्राप्ति पर मनुष्य जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।

महात्मा बुद्ध के निर्वाण के बाद महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को लेखबद्ध करने और बौद्ध भिक्षुओं में आ रहे मतभेद को दूर करने तथा बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए जिन महासभाओं का आयोजन हुआ उन्हें बौद्ध संगीति कहा गया है। कुल चार बौद्ध संगीतियों का आयोजन हुआ। 



बौद्ध धर्म के उपदेश तथा सिद्धांतों को पाली तथा स्थानीय भाषाओं में लिपिबद्ध किया गया था। इस लेख में बौद्ध संगितियों के स्थान, शासक व संगीतियों के अध्यक्षों के बारे में जानकारी दी गई।




बौद्ध-संगीतियां
बौद्ध संगीतियां



चार बौद्ध संगीतियां - 



प्रथम बौद्ध संगीति -


महात्मा बुध की मृत्यु के बाद प्रथम बौद्ध संगीति राजगृह में आयोजित की गई थी। इसका आयोजन राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में किया गया था। इस समय मगध का शासक अजातशत्रु था। इस संगीति की अध्यक्षता महाकश्यप ने की थी। 


महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन किया गया। बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का संकलन करके विभाजन किया गया जिन्हें पिटक नाम दिया गया। बौद्ध धर्म के त्रिपिटक प्रसिद्ध हैं। सुत्त पिटक का संकलन आनंद ने किया और इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को रखा गया है।


 विनय पिटक का संकलन उपालि ने किया इसमें भिक्षुओं के आचार - विचार के नियमों का संकलन है। इस प्रकार प्रथम बौद्ध संगीति अजातशत्रु के शासनकाल में महाकश्यप की अध्यक्षता में राजगृह में संपन्न हुई।



द्वितीय बौद्ध संगीति -


द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में किया गया। महात्मा बुद्ध के निर्माण के 100 वर्ष बाद बौद्ध भिक्षुओं में अनेक प्रकार के मतभेद उत्पन्न हो गए थे। इस सभा को बुलाने का मुख्य उद्देश्य बौद्ध भिक्षु में आए विभिन्न मतभेदों को दूर करना था ‌।


 यह कालाशोक के शासनकाल में आयोजित हुई। इस संगीति के बाद बौद्ध भिक्षु - संघ दो संप्रदाय में बंट गया था। ये दोनों संप्रदाय थेरवादी और महासांघिक / सर्वास्तिवादी कहलाए। संगीति के अध्यक्ष सावकमीर (सर्वकामनी) थे।



तृतीय बौद्ध संगीति -


तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन मौर्य शासक अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में आयोजित हुई। इस समिति की अध्यक्षता मोगलीपुत्त तिस्स ने की। 

इस समिति में कथावस्तु ( कथावस्थु) नामक ग्रंथ का संकलन किया गया था जो अभिधम्म पिटक का भाग है। इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की दार्शनिक व्याख्या की गई है।


चतुर्थ बौद्ध संगीति -


यह बौद्ध धर्म की यह सभा कनिष्क के शासन काल में कश्मीर के कुण्डलवन में आयोजित हुई। कनिष्क कुषाण शासक था। इस सभा की अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी। अश्वघोष इस सभा के उपाध्यक्ष थे।


 इस सभा के बाद बौद्ध धर्म दो स्वतंत्र संप्रदायों में विभाजित हो गया। वे संप्रदाय हीनयान और महायान हैं। बौद्ध भिक्षुओं का थेरवादी संघ हीनयान में बदल गया व महासांघिक संघ के बौद्ध महायानी कहलाए।


 अन्य सार संग्रह


महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए थे।
बुध की पूर्व जन्म की कथाएं - जातक कथाओं के नाम से जानी जाती हैं। इनका वर्णन सुत्त पिटक में है।

सुत्त पिटक में बुद्ध के उपदेशों का संकलन है।
विनय पिटक में भिक्षु संघ के नियमों का संग्रह है।

अभिधम्म पिटक में धम्म की दार्शनिक व्याख्या है।

बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था।

बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध , धम्म तथा संघ हैं।

इस प्रकार हमने बौद्ध धर्म की चार बौद्ध संगीतियों  के स्थान  अध्यक्ष और शासकों (Boudh sangiti -aayojan sthal , Adhyaksh and shaasak )  के बारे में सारगर्भित जानकारी  प्राप्त की है।  आशा है यह जानकारी आपको अच्छी लगी है। 


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