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10 जुल॰ 2020

राजस्थान के भौतिक विभाग -

राजस्थान के भौतिक विभाग | Rajasthan Ke Bhotik Vibhag


                 राजस्थान के भौतिक विभाग ( Rajasthan Ke Bhoutik Vibhag  या राजस्थान के भौतिक प्रदेश ( Rajasthan ke Bhotik Pradesh ) केन न  को समझने के लिए प्राक् ऐतिहासिक काल की जानकारी करना आवश्यक है। पिछले के माध्यम से राजस्थान के भौतिक स्वरूप या भौतिक विभागों के बारे में सरल रूप में जानकारी देने का प्रयास किया गया है। 


भूगर्भिक प्रमाण स्पष्ट दर्शाते हैं कि पश्चिमी राजस्थान पर विस्तृत समुद्र था। राजस्थान विश्व के प्राचीनतम भूखंडों का अवशेष है। प्रागैतिहासिक काल में विश्व दो भूखंडों में विभक्त था। उन भूखंडों का नाम अंगारालैंड और गोंडवानालैंड था। इन दोनों के मध्य टेथिस महासागर फैला हुआ था।

राजस्थान के भौतिक विभाजन में उत्तर-पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश व पूर्वी मैदानी भाग अधिकांशत टेथिससागर के अवशेष हैं तो मध्यवर्ती अरावली प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश गोंडवाना लैंड के भाग हैं। 


राजस्थान के भौगोलिक प्रदेशों में सबसे पहले अरावली पर्वतमाला का उसके बाद दक्षिण - पूर्वी पठारी प्रदेश का उसके बाद पूरी मैदानी प्रदेश का तथा सबके बाद में मरुस्थलीय प्रदेश का उद्भव हुआ। 

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यहां प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के भौतिक विभागों की सागगर्भित जानकारी देने का प्रयास किया किया है। 

Rajasthan Ke Bhotik Vibhag -

राजस्थान को जलवायु और धरातल के अंतर के आधार पर मुख्य रूप से निम्न चार भौतिक विभागों में बांटा जा सकता है - 

उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश 

मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश 

पूर्वी मैदानी प्रदेश 

दक्षिण - पूर्वी पठारी भाग 


यहां हम राजस्थान का प्रमुख भौतिक प्रदेश उत्तर-पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करेंगें -  


उत्तर - पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश - 




राजस्थान के भौतिक विभाग - उत्तर-पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश
राजस्थान के भौतिक विभाग 




राजस्थान के उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का कुल क्षेत्रफल राजस्थान की कुल क्षेत्रफल का 61.11% है। इस भूभाग में राजस्थान की 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में राजस्थान के 12 जिलों को सम्मिलित किया गया है।


 इस भू - भाग के जिलों में जैसलमेर ,बाड़मेर , जोधपुर , बीकानेर , हनुमानगढ़ , गंगानगर , नागौर जालौर , सीकर , झुंझुनू , चूरू और पाली जिले के पश्चिम भाग को सम्मिलित किया जा सकता है। राजस्थान का मरुस्थल (1,75,000 वर्ग किमी) थार के मरुस्थल का 3 / 5 हिस्सा रखता है।


 उत्तरी पश्चिमी मरुस्थल राजस्थान के लगभग दो तिहाई क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह राजस्थान का सबसे विशाल भौतिक प्रदेश है। 



थार का मरुस्थल दो देशों पाकिस्तान एवं भारत में 20,9000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। मरुस्थलों के अंतर्गत विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता इसी मरुस्थल में पाई जाती है

 इस प्रदेश में वर्षा 20 सेंटीमीटर से 50 सेंटीमीटर तक होती है। यही कारण है कि इस प्रदेश में शुष्क व अत्यधिक विषम जलवायु पाई जाती है। डॉ. ईश्वरी प्रकाश ने इस क्षेत्र को रुक्ष क्षेत्र भी कहा है। 



यह भूभाग अरावली पर्वतमाला के उत्तर पश्चिम एवं पश्चिम में विस्तृत है। अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिणी पश्चिमी मानसून से यहां बहुत कम वर्षा होती है।इस प्रदेश का सामान्य ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर है।

 यहां सर्वाधिक दैनिक तापांतर पाया जाता है। गर्मियों में 49 डिग्री सेंटीग्रेड तक तथा सर्दियों में 3 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान रहता है। 



रेत के विशाल बालुका स्तूप इस भू - भाग की प्रमुख विशेषता है। इस प्रदेश में लिग्नाइट , प्राकृतिक गैस , खनिज तेल लाइम स्टोन के विशाल भंडार मौजूद हैं। 



50 सेंटीमीटर वर्षा रेखा राजस्थान को सम्मान दो भागों में विभाजित करती है उसी प्रकार 25 सेंटीमीटर वर्षा रेखा उत्तरी पश्चिमी मरुस्थल को सम्मान दो भागों में विभाजित करती है। इसी के आधार पर शुष्क मरुस्थल प्रदेश को भी हम दो भागों में बांट सकते हैं - 

  रेतीला शुष्क मैदान - 


रेतीले शुष्क मैदान में वर्षा का वार्षिक औसत 20 सेंटीमीटर तक रहता है। वर्षा अत्यधिक कम होने के कारण इस प्रदेश को शुष्क बालू का मैदान भी कहते हैं। इसके अंतर्गत पूरा जैसलमेर संपूर्ण बीकानेर, चूरु , बाड़मेर, नागौर तथा जोधपुर के कुछ हिस्सों को सम्मिलित किया गया है।

 इस रेतीले शुष्क मैदान में बालुका स्तूप युक्त क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के बालुका स्तूपों का बाहुल्य पाया जाता है। 



पश्चिमी रेतीले शुष्क मैदान को भी दो भागों में बांटा गया है - 



बालुका स्तूप युक्त मरुस्थलीय प्रदेश  -



कुछ प्रमुख बालुका स्तूपों के बारे में इस प्रकार से जान सकते हैं - 



बरखान - ये अर्धचंद्राकार बालुका स्तूप होते हैं। यह गतिशील नवीन बालू युक्त होते हैं जो श्रृंखलाबद्ध रूप में पाए जाते हैं। इस प्रकार के बालुका स्तूप सर्वाधिक विनाशक होते हैं। 



अनुप्रस्थ बालुका स्तूप - पवनों के समकोण पर बनने वाले यह बालुका स्तूप मरुस्थलीकरण के लिए उत्तरदायी होते हैं। 



पैराबोलिक बालुकास्तूप -यह बालुका स्तूप सभी मरुस्थली जिलों में विद्यमान हैं। 



बालुका स्तूप मुक्त क्षेत्र - 



रेतीले शुष्क मैदान के पूर्वी भाग में बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश भी है जिसमें बालुका स्तूपों का अभाव है। इस क्षेत्र में अवसादी चट्टानों का बाहुल्य है। क्षेत्र को जैसलमेर बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश भी कहते हैं।

 इन चट्टानों में वनस्पति , तेल भंडार, प्राकृतिक गैस एवं जीवाश्म पाए जाते हैं । जैसलमेर के राष्ट्रीय मरू उद्यान में स्थित आकल वुड फॉसिल पार्क ( जीवाश्म उद्यान ) बालुका स्तूप मुक्त क्षेत्र का अनूठा उदाहरण है। 


इस भूभाग में छप्पन की पहाड़ियां, सिवाना पर्वत, नाकोडा पर्वत सुंधा माताजी का पर्वत , हल्देश्वर की पहाड़ियों में स्थित पीपलोद नामक स्थान जो मारवाड़ का लघु माउंट भी कहलाता है आदि को सम्मिलित किया गया है।         

अर्द्ध शुष्क मैदान - 


पश्चिमी रेतीले मैदानी प्रदेश का वह भाग जहां औसत वार्षिक वर्षा 25 सेंटीमीटर से 50 सेंटीमीटर के मध्य होती है । अर्द्ध -शुष्क मैदान को भी  सामान्यत 4 भागों में विभाजित किया जा सकता है - 


घग्गर का मैदान - 


यह हनुमानगढ़ एवं गंगानगर जिलों में विस्तृत है। इसका निर्माण घग्गर नदी की बाढ़ से हुआ है। घग्गर नदी को वर्तमान में मृत नदी के नाम से जाना जाता है। घग्घर नदी पौराणिक सरस्वती नदी के स्थान पर बहती है

 वर्षा ऋतु में कभी-कभी बाढ़ के आ जाने से इसका पानी अनूपगढ़ होते हुए पाकिस्तान के फोर्ट अब्बास तक पहुंच जाता है। घग्गर नदी के पाट को नाली कहते हैं। 


लूनी बेसिन - 


लूनी नदी एवं उसकी सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र को गौडवाड़ प्रदेश या लूनी बेसिन के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र पाली जालौर , जोधपुर, सिरोही , नागौर में फैला हुआ है। 


इस क्षेत्र में जालौर जिले में स्थित सिवाना की पहाड़ियों से ग्रेनाइट निकलता है। सिवाना की पहाड़ियां ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध हैं। 



लूनी नदी अजमेर के नाग पहाड़ से निकलती है और गुजरात के कच्छ के रण में गिरती है। बाड़मेर के बालोतरा नामक स्थान तक इस नदी का जल मीठा होता है उसके बाद में खारा हो जाता है। 



बांगर प्रदेश - 


इसे शेखावाटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र भी कहा जाता है। बांगर प्रदेश के इस भूभाग में सीकर, झुंझुनू , चूरू और नागौर का कुछ भाग आता है। 



शेखावाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले घास के मैदानों को स्थानीय भाषा में बीड़ कहा जाता है । इस छेत्र में कांटली, रुपनगढ़ आदि आंतरिक जल प्रवाह की नदियां बहती हैं। 


यहां बरखान नामक बालुका स्तूप पाए जाते हैं। बरखान अर्द्ध चन्द्राकार बालुका स्तूप होते हैं। 


नागौरी उच्च भूमि प्रदेश - 


बांगर प्रदेश एवं लूनी बेसिन के मध्य स्थित नागौर जिले की धरातल से ऊपर उठी हुई भूमि को नागौरी उच्च भूमि प्रदेश नाम दिया गया है। इस क्षेत्र में खारे पानी की सर्वाधिक जिले हैं जहां नमक का उत्पादन होता है। यहां डीडवाना , कुचामन ,सांभर ,नावां  आदि खारे पानी की झीले स्थित हैं। 


नागौर व अजमेर जिले के मध्य पाए जाने वाली भूमि के जल में फ्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक होती है जिससे वहां के व्यक्तियों में कुबड़ निकल आती है। यहां स्थित फ्लोराइड युक्त जल पट्टी को कुबड़ पट्टी के नाम से जाना जाता है। फ्लोराइड के अत्यधिक सेवन से फ्लोरोसिस नामक रोग हो जाता है। 



उत्तर-पश्चिम मरुस्थलीय भौतिक विभाग से संबंधित  जानकारियां एक नजर 
 

राजस्थान के इस भूभाग में राष्ट्रीय मरू उद्यान स्थित है। यह राजस्थान राज्य का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण्य है। 

थार मरुस्थल को सबसे अधिक जैव विविधता वाला मरुस्थल माना जाता है। थार मरुस्थल विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला मरुस्थल है। 

थार मरुस्थल के निर्माण में दक्षिणी पश्चिमी मानसून की हवाओं का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। 

राजस्थान में स्थित मरुस्थल को थार मरुस्थल के नाम से जाना जाता है। 

इस भौतिक प्रदेश की प्रमुख नदी लूनी नदी है। लूनी नदी अजमेर के नाग पहाड़ से निकलकर कच्छ के रण ( गुजरात ) में समाप्त या विलुप्त हो जाती है। 

उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य नहर इंदिरा गांधी नहर है। इंदिरा गांधी नहर को राजस्थान की जीवन रेखा के नाम से भी जाना जाता है। 

राजस्थान की कुबड़पट्टी नागौर व अजमेर जिले में स्थित है। कुबड़पट्टी से तात्पर्य इन क्षेत्रों के पानी में अत्यधिक फ्लोराइड की मात्रा से संबंधित क्षेत्र से है। 



बाड़मेर के सिवाना पहाड़ी क्षेत्र में स्थित गोलाकार पहाड़ियों को छप्पन की पहाड़ियां और नाकोड़ा पर्वत के नाम से जाना जाता है। 

राजस्थान का रेगिस्तानी क्षेत्र टेथिस सागर के अवशेष माने गए हैं। 

थार मरुस्थल विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला मरुस्थल है। 

रेगिस्तानी क्षेत्र की निम्न भूमि में कभी-कभी जल भर जाने से स्थाई जिलों का निर्माण हो जाता है जिन्हें टाट या रन कहते हैं। 

त्रिकूट पहाड़ी जैसलमेर जिले में स्थित है। 

मरुस्थल के प्रकार - 

रेतीले मरुस्थल को इर्ग नाम से जाना जाता है। 

पथरीला मरुस्थल को हम्माद नाम से जाना जाता है। 

रेतीले और पथरीले अर्थात मिश्रित मरुस्थल को रैग नाम से जाना जाता है ‌। 

मिटटी का सर्वाधिक अपरदन राजस्थान के इसी भू भाग में होता है। 

न्यूनतम जनसंख्या घनत्व राजस्थान इसी भौतिक प्रदेश में पाया जाता है। 

जैसलमेर में स्थित चांदन नलकूप को रेगिस्तान का थार का घड़ा नाम से जाना जाता है। 

राजस्थान का एकमात्र जीवाश्म पार्क (आकल वुड फॉसिल पार्क ) जो जैसलमेर में स्थित है राजस्थान के उत्तर पश्चिमी मरुस्थलीय भौतिक प्रदेश में स्थित है। 

जैसलमेर में पोकरण से लेकर मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे भूगर्भीय जल की एक चौड़ी पट्टी है जहां सेवन घास उठती है उसे लाठी सीरीज क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। 

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इस प्रकार आज हमने राजस्थान के भौतिक प्रदेशों में से एक विभाग उत्तर-पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश की सारगर्भित जानकारी प्राप्त की है। जानकारी अच्छी लगी तो साथियों को अवश्य शेयर करें। 

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