राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन | Rajasthan prajamandal andolan
राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन की संपूर्ण जानकारी ( rajasthan prajamandal andolan ) के बारे में इस लेख में परीक्षापयोगी सारगर्भित जानकारी दी गई है।
राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन जन जागृति के द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए किया गया प्रयास था। 1938 के बाद राजस्थान की लगभग सभी रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना हुई। प्रजामण्डल का अर्थ है - जनता का समूह।
राजस्थान के प्रजामंडल आंदोलन जन जागृति के द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए किया गया प्रयास था। 1938 के बाद राजस्थान की लगभग सभी रियासतों में प्रजामंडलों की स्थापना हुई। प्रजामण्डल का अर्थ है - जनता का समूह।
ब्रिटिश भारत का प्रशासन ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त गवर्नर जनरल और उनके अन्य अधिकारियों की हाथ में था लेकिन रियासती भारत में राजाओं का निरंकुश शासन था। रियासत या 'रजवाड़े' व्यापक अर्थ में देसी रियासत कहलाती थी। रियासत भारतीय राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र थे।
राजाओं द्वारा रियासत की जनता पर अत्याचार किया जाता था। । इन अत्याचारों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए जनता ने सामूहिक संगठन बनाना शुरु कर दिया। जनता का यह समूह ही प्रजामंडल के नाम से जाना जाता है।
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राजस्थान में प्रजामण्डल क्षेत्र (rajasthan me prajamandal )
किसान आंदोलन , जन आंदोलन के साथ साथ राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलन भी रियासतों के निरंकुश शासन से छुटकारा प्राप्त कर उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।
रियासतों में फैली हुई विभिन्न बुराइयों को समाप्त करके वहां के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और उत्तरदायी शासन की स्थापना करना प्रजामंडल स्थापना का मुख्य उद्देश्य था।
रियासतों में फैली हुई विभिन्न बुराइयों को समाप्त करके वहां के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और उत्तरदायी शासन की स्थापना करना प्रजामंडल स्थापना का मुख्य उद्देश्य था।
राजस्थान में विभिन्न प्रजामंडल आंदोलन हुए जिनका संक्षिप्त विवरण प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए हम इस प्रकार से याद रख सकते हैं।
जयपुर प्रजामंडल | Jaipur prajamandal
यह राजस्थान का प्रथम प्रजामंडल था। जयपुर प्रजामंडल की स्थापना 1931 में कपूरचंद पाटनी व जमनालाल बजाज के द्वारा की गई।
जयपुर प्रजामंडल को राजनीतिक क्षेत्र में भी अधिक प्रभावी भूमिका निभाने के साथ जनता में भी राजनीतिक चेतना जागृत करने की उद्देश्य से 1936 ईस्वी में सेठ जमनालाल बजाज के प्रयासों से और श्री हीरालाल शास्त्री के सहयोग से जयपुर राज्य प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया। जयपुर के श्री चिरंजीलाल मिश्र को अध्यक्ष बनाया गया।
हीरालाल शास्त्री ने जयपुर प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से पूर्णता अलग रखा गया था। क्योंकि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय हीरालाल शास्त्री एवं मिर्जा इस्माइल के मध्य जो समझौता हुआ उससे जयपुर प्रजामंडल संतुष्ट था।
जयपुर राज्य राजस्थान का पहला राज्य बना था जिसने अपने मंत्रिमंडल में गैर सरकारी सदस्य जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष देवी शंकर तिवारी को नियुक्त किया गया।
जयपुर प्रजामंडल को राजनीतिक क्षेत्र में भी अधिक प्रभावी भूमिका निभाने के साथ जनता में भी राजनीतिक चेतना जागृत करने की उद्देश्य से 1936 ईस्वी में सेठ जमनालाल बजाज के प्रयासों से और श्री हीरालाल शास्त्री के सहयोग से जयपुर राज्य प्रजामंडल का पुनर्गठन किया गया। जयपुर के श्री चिरंजीलाल मिश्र को अध्यक्ष बनाया गया।
हीरालाल शास्त्री ने जयपुर प्रजामंडल को भारत छोड़ो आंदोलन से पूर्णता अलग रखा गया था। क्योंकि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय हीरालाल शास्त्री एवं मिर्जा इस्माइल के मध्य जो समझौता हुआ उससे जयपुर प्रजामंडल संतुष्ट था।
जयपुर राज्य राजस्थान का पहला राज्य बना था जिसने अपने मंत्रिमंडल में गैर सरकारी सदस्य जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष देवी शंकर तिवारी को नियुक्त किया गया।
बूंदी प्रजामंडल -
बूंदी प्रजामंडल की स्थापना 1931 में की गई। श्री कांतिलाल प्रदेश के प्रथम अध्यक्ष बने थे।
मेवाड़ प्रजामंडल | Mewad Prajamandal
मेवाड़ प्रजामंडल को उदयपुर प्रजामंडल के नाम से भी जाना जा सकता है। राजस्थान में सर्वाधिक प्रतिष्ठित राज्य मेवाड़ ही था। मेवाड़ प्रजामंडल के संस्थापक श्री माणिक्य लाल वर्मा को माना जाता है। इन्हीं के प्रयासों से उदयपुर में श्री बलवंत सिंह मेहता की अध्यक्षता में 24 अप्रैल 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की गई।
मेवाड़ का वर्तमान शासन माणिक्य लाल वर्मा द्वारा रचित पुस्तक है जो अजमेर से प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक में मेवाड़ में फैली हुई व्यवस्था एवं तानाशाही की आलोचना की गई।
मेवाड़ प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन 1941 में 25-26 नवंबर को श्री माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। आचार्य जे.बी. कृपलानी द्वारा प्रथम अधिवेशन का उद्घाटन किया था।
अखिल भारतीय देसी लोक राज्य परिषद का छ्ठा अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में हुआ था। इस अधिवेशन में बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार उत्तरदायी शासन की स्थापना की अपील की गई थी।
मेवाड़ का वर्तमान शासन माणिक्य लाल वर्मा द्वारा रचित पुस्तक है जो अजमेर से प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक में मेवाड़ में फैली हुई व्यवस्था एवं तानाशाही की आलोचना की गई।
मेवाड़ प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन 1941 में 25-26 नवंबर को श्री माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। आचार्य जे.बी. कृपलानी द्वारा प्रथम अधिवेशन का उद्घाटन किया था।
अखिल भारतीय देसी लोक राज्य परिषद का छ्ठा अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में हुआ था। इस अधिवेशन में बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार उत्तरदायी शासन की स्थापना की अपील की गई थी।
मारवाड़ प्रजामंडल | Marwad Prajamandal
मारवाड़ में प्रजामंडल की स्थापना 1934 में हुई जिसके मुख्य संस्थापक जयनारायण व्यास को माना जाता है। संस्थापक सदस्यों में जय नारायण व्यास के साथ भंवरलाल सरार्फ, आनंद मल सुराणा , अभय मल जैन एवं अखिलेश्वर प्रसाद शर्मा का प्रयास भी था।
1938 ने कांग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन आयोजित हुआ था। 16 मई 1938 को जोधपुर में मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना की गई। इस परिषद का मुख्य उद्देश्य महाराजा के सानिध्य में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था।
इससे पूर्व 1920 में मारवाड़ सेवा संघ पहली राजनीतिक संस्था की स्थापना हुई।
1921 में मारवाड़ हितकारिणी सभा का गठन हुआ।
मारवाड़ में राजनीतिक जागृति का जनक जयनारायण व्यास को माना जाता है।
मारवाड़ हितकारिणी सभा ने 2 पुस्तकें प्रकाशित की थी जिनका नाम है मारवाड़ की अवस्था और पोपाबाई का राज। जय नारायण दास द्वारा रचित हैं।
1921 में मारवाड़ हितकारिणी सभा का गठन हुआ।
मारवाड़ में राजनीतिक जागृति का जनक जयनारायण व्यास को माना जाता है।
मारवाड़ हितकारिणी सभा ने 2 पुस्तकें प्रकाशित की थी जिनका नाम है मारवाड़ की अवस्था और पोपाबाई का राज। जय नारायण दास द्वारा रचित हैं।
बीकानेर प्रजामंडल | Bikaner prajamandal
बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना 4 अक्टूबर 1936 को हुई थी।
बीकानेर प्रजामंडल के संस्थापक मंगाराम वैद्य व लक्ष्मण दास स्वामी को माना जाता है।
अन्य सहयोगी सदस्यों के रूप में बाबू , मुक्ता प्रसाद , रघुवर दयाल गोयल थे।
राजस्थान के बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना राज्य से बाहर कलकत्ता में हुई थी।
महाराजा गंगा सिंह दूसरे गोलमेज सम्मेलन में देसी राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में लंदन गए थे।
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात पेरिस के शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में महाराजा गंगा सिंह एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि थे।
1921 में चेंबर ऑफ प्रिंसेस की स्थापना में भी गंगासिंह ने अग्रणी भूमिका निभाई थी।
बीकानेर प्रजामंडल के संस्थापक मंगाराम वैद्य व लक्ष्मण दास स्वामी को माना जाता है।
अन्य सहयोगी सदस्यों के रूप में बाबू , मुक्ता प्रसाद , रघुवर दयाल गोयल थे।
राजस्थान के बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना राज्य से बाहर कलकत्ता में हुई थी।
महाराजा गंगा सिंह दूसरे गोलमेज सम्मेलन में देसी राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में लंदन गए थे।
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात पेरिस के शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में महाराजा गंगा सिंह एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि थे।
1921 में चेंबर ऑफ प्रिंसेस की स्थापना में भी गंगासिंह ने अग्रणी भूमिका निभाई थी।
हाड़ौती प्रजामंडल | Hadoti prajamandal
हाड़ौती प्रजामंडल की स्थापना 1934 में हुई। हाड़ोती प्रजामंडल के संस्थापक पंडित नयनू राम शर्मा थे। इसे कोटा प्रजामण्डल के नाम से भी जाना जाता है
सिरोही प्रजामंडल के संस्थापक गोकुलभाई भट्ट थे।
भरतपुर प्रजामंडल -
भरतपुर में महाराजा किशन सिंह द्वारा जनजागृति फैलाकर उत्तरदायी शासन के लिए महत्वपूर्ण योगदान रहा।1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना की गई थी।
श्री किशन लाल जोशी के प्रयासों से 1938 ईस्वी में भरतपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना की गई इसके अध्यक्ष श्री गोपी लाल यादव को बनाया गया।
भरतपुर प्रजामंडल का नाम बदलकर भरतपुर प्रजा परिषद रख दिया गया था।
गोकुल वर्मा भरतपुर प्रजामंडल के नेता जो शेर-ए-भरतपुर के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
भरतपुर प्रजामंडल के नेता जुगल किशोर चतुर्वेदी को दूसरा जवाहर लाल नेहरू भी कहा गया है।
डूंगरपुर प्रजामंडल -
डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना 1934 में हुई थी।
डूंगरपुर प्रजामंडल के संस्थापक श्री भोगीलाल पंड्या थे।
अन्य सहयोगी सदस्य गौरी शंकर उपाध्याय , हरिदेव जोशी , शिवलाल कोटडिया , माणिक्य लाल वर्मा थे।
कोटा प्रजामंडल | Kota Prajamandal
कोटा प्रजामंडल की स्थापना 1939 में की गई।कोटा प्रजामंडल के संस्थापक पंडित नयनू राम शर्मा को माना जाता है।
नयनू राम शर्मा को कोटा में जनजागृति का जनक माना गया है।
जैसलमेर प्रजामंडल -
जैसलमेर प्रजामंडल की स्थापना 15 दिसंबर 1945 को हुई।जैसलमेर प्रजामंडल के संस्थापक श्री मीठा लाल व्यास थे।
जैसलमेर में सर्वहितकारिणी वाचनालय की स्थापना 1915 में की गई थी।
झालावाड़ प्रजामंडल -
यह एकमात्र ऐसा प्रजामंडल था जिसे वहां के शासक नरेश हरिश्चंद्र का समर्थन प्राप्त था।
राजस्थान का अंतिम प्रजामंडल झालावाड़ था।
राजस्थान के प्रजामंडल | Rajasthan Ke Prajamandal आंदोलन से संबंधित सार संग्रह -
राजस्थान के प्रथम प्रजामंडल की स्थापना जयपुर रियासत में की गई थी।
सिरोही राज्य प्रजामंडल के संस्थापक गोकुलभाई भट्ट था।
बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना कोलकाता में की गई थी।
प्रजामंडल का मुख्य उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था।
करौली प्रजामंडल की स्थापना त्रिलोक चंद माथुर द्वारा की गई थी।
जयपुर प्रजामंडल के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष जमनालाल बजाज थे।
काँगड़ कांड बीकानेर प्रजामंडल आंदोलन के दौरान घटित हुआ था।
हाडौ़ती (कोटा)प्रजामंडल की स्थापना नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में की गई थी।
जोधपुर रियासत सबसे बड़ी रियासत थी।
रियासतों में झालावाड़ सबसे नवीन रियासत थी।
राजस्थान में सर्वप्रथम राजनीतिक व सामाजिक चेतना का श्रेय महर्षि दयानंद सरस्वती एवं आर्य समाज को है।
सत्यार्थ प्रकाश स्वामी दयानंद सरस्वती की महत्वपूर्ण रचना है जिसका अधिकांश भाग उन्होंने उदयपुर में लिखा था।
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा परोपकारिणी सभा की स्थापना 1883 में उदयपुर में की गई थी। कुछ समय बाद ही संस्था को अजमेर स्थानांतरित कर दिया गया था।
राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना 1920 में जमनालाल बजाज द्वारा अजमेर में की गई।
मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना जोधपुर में 1921 में चांदमल सुराणा द्वारा की गई थी। जयनारायण व्यास ने इसे पुनर्जीवित किया था।
1903 में दिल्ली दरबार लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित किया गया दरबार था।
1903 में गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन द्वारा देसी रियासतों का सहयोग प्राप्त करने के लिए दिल्ली में दरबार आयोजित किया गया।
महाराणा फतेहसिंह को इनके दरबारी कवि व महान स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ ने तेरह सोरठों के माध्यम से दिल्ली दरबार में जाने से रोका था। इन सोरठों को चेतावनी रा चूंगट्या नाम से जाना जाता है।
प्रजामण्डल आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह भी रही की इस आंदोलन ने महिलाओं को घर की चारदीवारी से बहार निकलकर पुरुषों के बराबर खड़ा क्र दिया। अनेक महिलाओं ने आंदोलन में सक्रिय भाग लेकर गिरफ्तारियाँ देना शुरू क्र दिया था।
प्रजामण्डल आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह भी रही की इस आंदोलन ने महिलाओं को घर की चारदीवारी से बहार निकलकर पुरुषों के बराबर खड़ा क्र दिया। अनेक महिलाओं ने आंदोलन में सक्रिय भाग लेकर गिरफ्तारियाँ देना शुरू क्र दिया था।
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